उच्चतम न्यायालय ने (सीएए) पर फिलहाल रोक लगाने से इनकार किया

उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) पर फिलहाल रोक लगाने से इनकार कर दिया है। सीएए की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने संबंधी याचिकाओं पर बुुधवार को सुनवाई के दौरान न्यायालय ने कहा कि इस मामले में केंद्र का पक्ष सुने बिना सीएए पर रोक नहीं लगा सकते। साथ ही इस मामले में केंद्र को नोटिस जारी करते हुए न्यायालय ने 4 सप्ताह में जवाब मांगा है और अगली सुनवाई के लिए 4 सप्ताह बाद का समय दिया है। इसके अलावा न्यायालय द्वारा सीएए के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई के लिए पांच सदस्यीय संविधान पीठ का गठन किया जाएगा। इसके साथ ही सभी उच्च न्यायालयों में सीएए से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई करने पर भी तब तक के लिए रोक लगा दी गई है जब तक उच्चतम न्यायालय में इस मामले पर फैसला नहीं सुना दिया जाता।


एस ए बोबड़े की अध्यक्षता में की गई सुनवाई


उच्चतम न्यायालय ने सीएए के खिलाफ दायर याचिकाओं पर अपना फैसला सुनाए जाने तक सभी उच्च न्यायालयों में सीएए से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई करने पर भी रोक लगा दी है। दरअसल, उच्चतम न्यायालय में सीएए की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए कुल 143 याचिकाएं दायर की गई हैं जिनपर प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबड़े की अध्यक्षता वाली पीठ द्वारा सुनवाई की गई। हालांकि, एक याचिका सीएए के पक्ष में भी दायर की गई है जो कि केंद्र सरकार की ओर से है। उच्चतम न्यायालय ने सुनवाई के दौरान कहा कि सीएए की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा गया है। केंद्र को जवाब के लिए 4 सप्ताह का समय दिया गया है। 4 सप्ताह के बाद ही न्यायालय की ओर से इस मामले में कोई आदेश जारी किया जाएगा। लेकिन फिलहाल के लिए सीएए पर रोक नहीं है।


143 में से 60 याचिकाओं की प्रतियां ही केंद्र को भेजी गई हैं


केंद्र की ओर से अटॉर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल ने पीठ को बताया कि सीएए के खिलाफ दायर 143 याचिकाओं में से करीब 60 याचिकाओं की प्रतियां केंद्र सरकार के पास भेजी गई हैं। इन याचिकाओं पर जवाब देने के लिए केंद्र को समय चाह‌िए। वहीं, वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने उच्चतम न्यायालय से अनुरोध किया कि सीएए के क्रियान्वयन पर रोक लगाई जाए और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) की नियमावली को फिलहाल के लिए टाल दिया जाए।


कानून से मुस्लिम समुदाय के शरणार्थियों को रखा गया बाहर


गौरतलब है‌ कि नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के तहत 31 दिसंबर 2014 तक पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से धार्मिक प्रताड़ना झेलकर भारत आए हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय के शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता दिए जाने का प्रावधान है। इस कानून से मुस्लिम समुदाय को इसलिए बाहर रखा गया है क्योंकि तीनों देशों में मुस्लिम अल्पसंख्यक नहीं है। लेकिन मुस्लिमों को बाहर रखे जाने के कारण ही इस कानून को भारतीय संविधान के खिलाफ बताया जा रहा है।